अटलजीची संघावर केलेली एक कविता..
संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार सुरवातीला एकटेच होते त्यावर......
विरोधों के सागर में चट्टान है हम
जो टकराएंगे मौत अपनी मरेंगे
लिया हाथ में ध्वज कभी न झुकेगा
कदम बढ रहा है कभी न रुकेगा
न सूरज के सम्मुख अंधेरा टिकेगा
निडर है सभी हम अमर है सभी हम
के सर पर हमारे वरदहस्त करता
*गगन में लहरता है भगवा हमारा*
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